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Monday, August 11, 2025

हिन्दी लघुकथा (अङ्क २६ मा प्रकाशित)


झूठ की बात चली है तो अच्छा एक बात बताओ’’ बस के इंतजार में सडक पर खडी विद्यालय की शिक्षिका ने समय काटने के उद्देश्य से बच्चों से  पूछा, “बताओ अच्छा, पहला झूठ अपनी माँ  से तुमने कब और क्या बोला था? सच–सच बताना ।’’

अजीब सवाल सुनकर बच्चे एक दूजे का मुँह देखने लगे, उन्हें कुछ याद नही आया तो पास खडी, उनकी बात सुन रही एक फटेहाल सी बालिका एकदम बोल पडी, “मेने तो जो पेला झूठ माँ से बोला था वो आज भी कई बार बोलती हूँ ।’’

“अरे ! तुम भी !’’ शिक्षिका ने अचरज से कहा, “गलत बात है बेटी, तुम पढती नहीं क्या ? ऐसे झूठ बोलोगी तो आगे जाकर और परेशान होगी ।’’

“परेशानी सें माँ को बचाने के लिए ही तो झूठ बोलती हूँ ।’’

“गलत बात’’ …

“बेनजी पेले मेरा झूठ  सुन तो लो, थोडे से पेसे लेके जब माँ घर आती है ओर मेरा सराबी मामा उससे पेसे छीन लेता है ओर..ओर रोती हुई माँ मेरी तरफ देखती हे तो, तो …

मैं हमेसा माँ से बोल देती हूँ –मुझे भूख नी हे ।

बस यई झूठ में भोत बार बोलती हूँ ।’’

- ३१, सुदामा नगर, आगर रोड, उज्जैन, भारत

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