Monday, October 27, 2025

हिन्दी लघुकथा (अङ्क २६ मा प्रकाशित)


पार्किन्संस के कारण बाबूजी का अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं रहा था । इलाज़के अभाव में उनका मर्ज़बढता ही जा रहा था ।

आज भी चाय का कप ठीक से पकड न पाने के कारण वह हाथों से छूटकर बिखर गया । टूटने की आवाज़सुन, रजनी किचन से दौडी – दौडी बाबूजी के बरामदे में आई और गुस्से से लाल – पीली हो, बाबूजी को डाँटने – फटकारने लगी । बोली –  'बाबूजी ! फरि कर दिया न नुकसान…? कल ही तो आपने पानी का गिलास तोडा था ।'

रजनी की आवाज़सुन, रवि भी दौडा – दौडा आया और रजनी के सुर में सुर मिलाते हुए बाबूजी पर बिफरता हुआ बोला –  'बाबूजी ! रोज–रोज़ घर का नुकसान करते हुए आपको शर्म नहीं आती ……? अच्छा होता……, भगवान आपको उठा लेता । आपकी सेवा कर–कर अब हम थक चुके हैं ।'

मिनी, जो बहुत देर से उनका तमाशा देख रही थी, धीरे से रवि से बोली –  'रवि ! तुझे याद है, जब हम छोटे थे, तब तेरे हाथ से महँगा गुलदान गिर जाने के कारण…. वह टूट गया था । मम्मी तुझे डाँटते हुए ज्यों ही मारने दौडी थी, बाबूजी ने तुझे मम्मी की मार से बचाते हुए अपनी बाँहों में छुपाकर मम्मी को समझाते हुए कहा था –  'सुधा ! बच्चा ही तो है । यदि उससे गुलदान गिरकर टूट गया है तो ऐसा कौन–सा पहाड टूट गया…..? जीवन में नफा–नुकसान तो चलता ही रहता है । कल से जब हम बूढे होंगे….. हो सकता है, तब हमसे भी कोई बडा नुकसान हो जाए । तब क्या, रवि हमें डाँटेगा – फटकारेगा……? सही कह रहा हूँ न रवि …..?’ और तूने बाबूजी की हाँ में हाँ मिलाते हुए प्यार से उन्हें चूम लिया था । और आज तू कुछ क्राँकरी के टूट जाने के कारण भगवान से उनकी मौत की कामना कर रहा है ।’ मिनी ने बाबूजी के आँसू अपने हाथों से पौंछते हुए उन्हें अपनी बाँहों में भर लिया ।

सच है……. माँ – बाप बुढापे से इतने असहाय नहीं होते, जितने अपनी औलादों के व्यवहार से हो जाते हैं ।

- जूना बाजार, मक्सी जिलाः शाजापुर (म.प्र.)भारत

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