Monday, September 23, 2024

हिन्दी लघुकथा (अङ्क १६ मा प्रकाशित)

शब्द हीन प्यार

- डोली शाह पोस्ट- सुलतानी छोरा जिला- हैलाकांदी असम

रिंकी बचपन से ही भाइयों की लाडली और पापा के कलेजे के टुकड़ा थी। वह बहुत ही भावुक तथा जिद्दी किस्म की लड़की थी। वह अपनी जिद्द से हर इच्छा को पूरी कर लेती।
वह अपना अधिकतर समय पापा के साथ ही बिताती। रिंकी धीरे-धीरे बड़ी हो गई अब पापा उसके लिए एक अच्छा लड़का तलाशने लगे । उसका विवाह एक अच्छे घराने के लड़के के साथ करने का फ़ैसला किए। अब पिता को एक तरफ बेटी के घर बसाने की खुशी थी तो दूसरी ओर उसके जाने के बाद अकेलेपन को सोच घबराहट होती।
विवाह का दिन नजदीक आ रहा था। पिता की चिंता भी बढ़ती जा रही थी और रीकी को नए घर का डर। विवाह संपन्न हो गया। सब कुछ सही चल रहा था। अचानक एक दिन पिता की मृत्यु की सूचना रिंकी को मिली। लंबी दूरी होने के कारण वह वही उदास मन से सोचने लगी। मां तो उसे विदा करने से पहले ही खुद दुनिया से विदा हो गई और अब पिता। यह सुन वह पूरी तरह टूट गई।वह सोचने लगी,जिस घर से आंसू बहाते हुए पिता ने मुझे ससुराल के लिए विदा किया था उसी घर में जाकर पिता को इस दुनिया से..... रिंकी अगले दिन ही घर आई । वही भाइयों के साथ घंटों साथ पिता के शव को निहारती रही , रोती रही।फिर बोली -- पापा आपने मेरी हर इच्छा पूरी की है ।जो मांगा है वह आपने कहीं से भी ला कर मुझे दिया है। आप मुझे अकेला छोड़ कर नहीं जा सकते! कौन मेरा जिद पूरा करेगा? कौन मुझे अपनी गोद में बिठाएगा? चेहरे से बहुत कुछ कहने की इच्छा लेकिन कुछ भी शब्दों में ना बयान कर पाने पर भी पिता के चेहरे से साफ झलक रहा था।
लेकिन सच ही कहते हैं'" मृत्यु पर किसी का बस नहीं चलता।' उसके सामने हर चाह बेकार है।

....साथ सहयोगको खाँचो

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