असली शिकारी
- देवी नागरानी
"नमस्कार भाई साहब. आज नन्हें शहजादे के साथ सैर हो रही है क्या?"
"हाँ यह तो है पर एक कारण इसका और भी है. इस नन्हें शिकारी से अंदर बैठे महमानों और घरवालों को बचाने का यही एक तरीका है."
"वह कैसे ?" मैंने अनायास पूछ लिया.
"अजी क्या बताऊँ, सब खाना खा रहे हैं, और यह किसीको एक निवाला खाने नहीं देता. किसी की थाली पर, तो किसी के हाथ के निवाले पर झपट पड़ता है और................!."
अभी उनकी बात खत्म ही नहीं हुई कि एक कौआ जाने किन ऊँचाइयों से नीचे उतरा और बच्चे के हाथ में जो बिस्किट था, झपट कर अपनी चोंच में ले उडा.
मैंने उड़ते हुए पक्षी की ओर निहारते हुए कहा. "संत जी, देखिये तो असली शिकारी कौन है?" और वे कुछ समझ कर मुस्कराये और फिर ठहाका मारकर हंस पडे.
....साथ सहयोगको खाँचो
No comments:
Post a Comment