Friday, June 13, 2025

हिन्दी लघुकथा (अङ्क २४ मा प्रकाशित)


रहीम अपने परिवार के साथ कब्रिस्तान में बनी हुई झोंपडी में रहता था, वही उसका घर था । उसका बचपन वहीं कब्रों के आस–पास खेलते हुए बीता था । जब वह थोडा बडा हुआ तो पढने के लिए मदरसा जाने लगा । वहां पर उसने देखा कि सब बच्चे उसके बारे में ही खुसर–पुसर कर रहे थे । करीम अब्दुला से कह रहा था– "अरे ! ये तो वही है, जो कब्रिस्तान में रहता है, इसके साथ दोस्ती मत करना ।’’

"हां, तुम सही कहते हो, कल अगर इसके साथ कोई भूतप्रेत या जिन्न आ गया तो’’

पहले तो उनकी बातें रहीम को समझ में नहीं आई परन्तु बाद में पता चला कि कब्रिस्तान में रहने के कारण वे लोग उसका मजाक उडा रहे थे । घर आकर उसने यह बात अपने अम्मी–अब्बू को बताई तो उन्होंने उससे कहा– "बेटा ! लोग ऐसे ही बातें बनाते रहते हैं । बरसों से हमारा घर यहीं है और हम यहीं रहते हैं ।’’

"परन्तु अब्बू ! वे लोग तो कह रहे थे कि कब्रिस्तान में भूत रहते हैं और वे लोगों को बहुत सताते हैं । अगर उन्होंने मुझे सताया तो मैं यहां पर नहीं रहूंगा ।’’

"बेटा ! कब्रिस्तान में कोई भूत नहीं है । क्या तुमने आज तक किसी भूत को देखा है’’

"नहीं अब्बू, पर करीम कह रहा था कि कब्रों में जिन्न रहते हैं और वे रात को बाहर निकलकर वहां रहनेवाले मनुष्यों को सताते हैं ।’’

"ऐसा कुछ नहीं होता बेटा ! यह उनका भय है और वही उनके मन में भूत की परिकल्पना पैदा करता है ।’’


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