Sunday, July 21, 2024

हिन्दी लघुकथा (अङ्क १४ मा प्रकाशित)

मरीज की फीस

- सन्तोष सुपेकर
घज्ञ सुदामा नगर, उज्जैन  मध्य प्रदेश, भारत   



डाँक्टर साहब ने फीस बढाकर आठ सौ कर दी है । दस दिन में एक बार देखने की !’’ सडक पर घूमते रामनिवासजी ने दो व्यक्तियों का वार्तालाप सुना तो चौंक उठे, “ऐं? मेरा बेटा भी तो डाँक्टर है ! ये तो मैं भूल ही जाता हूँ । वह भी तो देखने की ’फीस’ लेता है । मैं भी अब यही करूंगा !’’ 

बड़बडाते हुए वे यू के में जा बसे अपने डाक्टर बेटे को याद करने लगे और पास ही की एक बेंच पर बैठकर मोबाइल फोन पर टाइप करने लगे- ऋषि बेटा, मैं भूल गया था कि मेरा बेटा होने के अलावा तू एक फेमस डाँक्टर भी है । खैर चल, ठीक है, मुझे एक मरीज ही समझ । तू मरीजों को देखने की फीस लेता है पर मैं, मैं तुझे, हाँ तुझे देखने की फीस तुझे ही दूंगा । तेरी फीस आठ सौ, नही नौ सौ, नही एक हजार भर दूंगा । तेरे खाते में डाल दूंगा । बस, आठ- दस दिन में एक बार, बस एक बार, मेरा वीडियो काँल अटेंड कर लिया कर । उसे काटा मत कर । मुझे  अपनी सूरत दिखा दिया कर बेटा ।’’

उन्होंने टाइप किया, डिलीट किया, फिर टाइप किया फिर... डिलीट... और ऐसा करते- करते उनका हाथ और फोन की स्क्रीन अचानक भीगने लगे, पसीने से ही नही, आंसूओं से भी ।


....साथ सहयोगको खाँचो

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