Saturday, November 9, 2024

हिन्दी लघुकथा (अङ्क १७ मा प्रकाशित)

 बिरादरी

- डा. संजय राय ‘रंगकर्मी-चित्रकार’
शिवनारायण रोड, कच्ची घाट, पटना सिटी-ड (भारत)   


कडकडाती ठंड में सिकुडते अजनबी अल्सेशियन बूढे कुत्ते को देख सडक के कुत्ते ने पूछा,

“कहाँ रहते हो? इतनी ठंड में बाहर क्यों घूम रहे हो? अपने मालिक के पास चले जाओ, वरना मारे जाओगे !”

अल्सेशियन कुत्ते ने कहा,

“अब वापस नहीं लौट सकता । मेरा मालिक मेरा बुढापे देखकर मुझे छोड़कर भाग निकला । मैंने उसका पीछा भी किया पर वो मोटरकार में था । तुम ही बताओ अब मैं कहाँ जाऊँ?”

सडक के कुत्ते ने कहा,

“यह इलाका मेरा है और मुझे अपने इलाके में किसी का आना हरगिज़पसंद नहीं ! भला चाहते हो, तो जितनी जल्दी हो सके यहाँ से दफा हो जाओ... !”

बूढे अल्सेशियन ने गिडगिडाते हुए कहा,

“इनसान ने तो अपनी जात तो दिखा दी, पर तुम तो अपनी बिरादरी वाले हो । एक कोने में पडा रहूँगा...रूखा-सूखा खाऊँगा लेकिन तुम्हारे इलाके पर आँच न आने दूँगा । बूढा जरूर हूँ पर इनसानों की संगत के असर से बेअसर हूँ । अपनी बिरादरी के लिए खून बहा दूँगा । जरा मेरे गले का पट्टा खोल दो... अब इसमें इन्सानी बू आती है ।“

यह सुनते ही गली के कुत्ते ने हिकारत से कहा,

“छिः, लानत है ऐसे मालिक पर !”

और सहानुभूति एवं स्नेहभरी दृष्टि से उसकी ओर देखने लगा । 


....साथ सहयोगको खाँचो

 

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